क्यों भारतीय विमानों ने अमेरिका जाने से किया इंकार?

                    हाल ही में इंटरनेट के क्षेत्र में उन्नति की जा रही है वह है 5G टेक्नोलॉजी। हम अपने मोबाइल फोन में पहले 2G , 3G फिर 4G और अब हम 5G टेक्नोलॉजी में आने का प्रयत्न कर रहे हैं , क्या आपको पता है कि 5G के नुकसान हैं और उन नुकसानों के चलते भारत की एक एयरलाइंस कम्पनी एयर इंडिया ने अमेरिका जाने से इंकार कर दिया। 19 जनवरी को अमेरिका जाने वाली फ्लाईट्स सस्पेंड कर दी गई।

                           एयर इंडिया के अमेरिका न जाने की वजह 5G टेक्नोलॉजी है। 5G टेक्नोलॉजी की वजह से जब विमानों ने जाने से मना कर दिया तो इसका पछियों पर कितना गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह विषय आने वाले समय में एक भयंकर सवाल रहेगा।


               एयर इंडिया , जापान और एमिरेट्स ने कहा कि वह अमेरिका के कुछ एयरपोर्ट्स पर लैंड नही करेंगी।  एयर इंडिया ने कहा कि US के 4 ऐसे स्टेशन्स जहाँ पर हमारा Boeing 777S उतर सकता था , हमें या तो एयरक्राफ्ट का टाइप बदलना होगा या फिर हम अपना लोकेशन बदलेंगे।   केवल भारत ने ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों ने भी यह फैसला लिया है।

                       दुबई की एयरलाइन्स  जिसका नाम दुबई एमिरेट्स  है उन्होंने कहा कि हमारा Boeing 777 अब 9 अमेरिकी एयरपोर्ट्स पर नहीं लैंड करेगा। 

                        जापान की दो एयरलाइन्स  ने कहा कि हम Boeing 777 का उपयोग करते हैं हम अमेरिका नही जायेंगे । इसी क्रम में ताइवान चीन एयरलाइन्स कम्पनी कैथे पेसिफिक ( Cathay Pacific) ने कहा कि हम अमेरिका नही जायेंगे।

क्या है अमेरिका न जाने की वजह?-:    सभी एयरलाइन्स की अमेरिका न जाने की मुख्य वजह यह है कि अमेरिका में 5G कम्युनिकेशन  शुरू होने जा रहा है। चूंकि पायलट को विमान चलाते समय केवल सामने का हिस्सा दिखाई देता है न कि नीचे का फिर भी पायलट विमान को हवाई पट्टी पर आसानी से उतार देता है। विमान जमीन से कितनी ऊँचाई पर है इसका पता लगाकर ही पायलट विमान को उतारता है। विमान कितनी ऊँचाई पर है इसका पता लगाने के लिए विमान में एक अल्टीमीटर (Altimeter)  नाम का यंत्र लगा होता है जो तीव्र फ्रीक्वेंसी की तरंग निकालता है जो पृथ्वी से टकराकर उसे उसकी ऊँचाई का आभास कराता है। यह अल्टीमीटर पूरी यात्रा तक काम करता है।

                    मुसीबत यह है कि यदि ऐसी तीव्र फ्रीक्वेंसी इंटरनेट की हुई , जितनी अल्टीमीटर की है तो पायलट को यह  कैलकुलेट करने में दिक्कत आ जायेगी कि यह इंटरनेट का रिस्पॉन्स आ रहा है या फिर जमीन का । इससे पायलट को लैंडिंग के समय बहुत ज्यादा दिक्कतें आने लगेंगी। अब सवाल यह है कि यदि किसी ने मोबाइल का उपयोग न किया तो, ऐसा संभव ही नहीं है कि कोई व्यक्ति मोबाइल का उपयोग न करे ।

                     इस स्थिति में जब अल्टीमीटर काम नहीं कर पाएगा तो लैंडिंग खराब हो जायेगी, जिससे बहुत बड़ी दुर्घटना घट सकती है।

विमान तथा 5G टेक्नोलॉजी की फ्रीक्वेंसी-:        ऊँचाई मापने वाला यंत्र अल्टीमीटर 4.2 - 4.4 GHz  के रेंज की फ्रीक्वेंसी पर काम करता है और जो US की सरकार द्वारा             C- bond   इंटरनेट की परमिशन दी गई है जो 3.75 से 3.98 GHz  के रेंज की फ्रीक्वेंसी पर काम करता है जो कि लगभग 4GHz की फ्रीक्वेंसी के बराबर है। एक तरफ यूरोपियन यूनियन  ने इंटरनेट के फ्रीक्वेंसी की अधिकतम सीमा 3.8GHz  रखी है। इसका कारण यह है कि विमानों की फ्रीक्वेंसी और इंटरनेट की फ्रीक्वेंसी आपस में न टकरा जाए। 


                     US सरकार द्वारा दी गई इंटरनेट फ्रीक्वेंसी तथा विमानों की फ्रीक्वेंसी एक दूसरे के बहुत करीब हैं क्योंकि ये फ्रीक्वेंसी कभी भी घट - बढ़ सकती हैं जिससे दुर्घटना होने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है। इसलिए ये एयर कम्पनियां एयरपोर्ट्स पर 5G टेक्नोलॉजी लगाने से मना कर रही हैं। एयर कंपनियों का कहना है कि एयरपोर्ट्स से करीब 2 मील दूर तक 5G टेक्नोलॉजी न लगाई जाए।

               हालांकि यह सब होने के पश्चात् अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वहाँ की बड़ी प्राइवेट कंपनियों को लिख कर दिया कि कृपया करके एयरपोर्ट्स पर 5G इंटरनेट लगाने की प्रक्रिया को रोक दिया जाए। राष्ट्रपति की बात मानते हुए वहाँ की कंपनियों ने एयरपोर्ट्स के आस पास के क्षेत्रों में 5G इंटरनेट लगाने की प्रक्रिया को रोक दी गई है।


              अब हम खुद ही सोच सकते हैं कि यह हमारे लिए कितना घातक सिद्ध हो सकता है। जब हवाई जहाज खुद को नेविगेट नही कर पा रहें हैं तो पक्षियों के ऊपर इसका कितना घातक प्रभाव होगा। इसके लिए कुछ समय पहले जूही चावला ने 5G ट्रायल के खिलाफ कोर्ट में अपील दायर की लेकिन इस मामले की कोई सुनवाई नहीं हुई। इनका कहना था कि उड़ने वाले पक्षियों को अपनी दिशा का पता लगाने में बहुत दिक्कतो का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पक्षी भी दिशा का पता लगाने के लिए फ्रीक्वेंसी का ही प्रयोग करते हैं। आगे आने वाले समय में यह हमारे लिए एक चुनौती पूर्ण कार्य हो जायेगा। अतः इस 5G टेक्नोलॉजी की हर एक क्षेत्र में जाँच की जानी चाहिए।

              

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